Rahul Gupta: आपकी एसआईपी स्ट्रैटेजी हो रही फेल, डूब रहे हैं पैसे, हाई रिटर्न के ट्रैक पर लौटने के लिए l करें ये काम

 


फिनैकोफंड म्यूचुअल फंड धन विशेषज्ञ राहुल गुप्ता के साथ विशेष साक्षात्कार:

इक्विटी म्‍यूचुअल फंड हाई रिटर्न देने के लिए जाने जाते हैं. इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेशकों का पैसा शेयर में निवेश किया जाता है. आज के दौर में म्‍यूचुअल फंड को और आसान और सुरक्षित बनाने के लिए निवेशकों के बीच सिस्‍टमैटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लान यानी SIP पॉपुलर हो रहा है. SIP लंबी अवधि का निवेश होता है, जिससे हाई रिटर्न मिलने के चांस बढ़ जाते हैं. लेकिन ध्‍यान रहे कि इक्विटी फंड स्‍टॉक मार्केट से जुड़े होते हैं, इसलिए इनमें रिस्क मौजूद होता है. वैसे तो म्यूचुअल फंड में अगर SIP के जरिए लंबी अवधि के लक्ष्य के साथ निवेश करें तो निवेशकों को हाई रिटर्न मिलने के चांस ज्यादा होते हैं. लेकिन कुछ मामलों में म्यूचुअल फंड में भी निवेशकों को नुकसान होने की संभावना रहती है. 

म्यूचुअल फंड में एसआईपी पोर्टफोलियो जब निवेशकों को नुकसान कराने लगता है तो कई बार खासतौर से नए निवेशक घबरा जाते हैं और वे अपनी यूनिट बेचने लगते हैं या अपना पूरा निवेश ही निकाल लेते हैं. लेकिन ये कदम उन निवेशकों के फाइनेंशियल प्लानिंग को बिगाड़ सकता है और वे अपने लक्ष्य से पीछे रह जाते हैं. एक्सपर्ट घबराकर यूनिट सेल करने या गलत निर्णय लेने की बजाए, इन मामलों में ऐसे उपाय पर ध्यान देने की बात करते हैं, जिससे पहले तो आपका रिटर्न वापस पटरी पर लौट आए, फिर उनके द्वारा तय किया गया लक्ष्य भी पूरा हो सके

निवेश में धैर्य रखना जरूरी :Rahul Gupta

सफल निवेश के लिए यह पहला कदम है कि चुनौतियों में भी मन को शांत रखते हुए धैर्य बनाए रखें. शेयर बाजार में उतार चढ़ाव एक आम घटना है, जो समय समय पर देखने को मिलता है. लेकिन लंबी अवधि की हिस्ट्री देखें तो बाजार अच्छा प्रदर्शन करते हैं. शॉर्ट टर्म में, अस्थिरता के कारण कीमत ऊपर और नीचे जाती है. जहां शॉर्ट टर्म में अस्थिरता के चलते म्यूचुअल फंड में नुकसान होता है, वहीं अगर आप लंबी अवधि पर नजर डालें तो 3-4 साल की होल्डिंग के बाद पॉजिटिव रिटर्न ही देखने को मिलता है.

जल्दबाजी में यूनिट न सेल करें : Rahul Gupta 

आप गिर रहे बाजार में म्यूचुअल फंड में छोटी अवधि के दौरान नुकसान उठा सकते हैं. लेकिन इसका मतलब यह है कि आपको अपना निवेश भुना लेना चाहिए. निवेश से एक साल पहले भुनाए जाने वाले इक्विटी म्यूचुअल फंड पर ज्यादातर मामलों में 1% का एक्जिट लोड लगता है. 

कुछ निवेशकों का मानना ​​है कि जब म्यूचुअल फंड की वैल्यू नीचे जाए तो वे अपना पैसा इससे निकाल सकते हैं, लेकिन इसका रिजल्ट ठीक नहीं होता है. SIP आपको बाजार के टाइमिंग से मुक्त कर देता है. जब बाजार नीचे होता है तो यह आपके लिए अधिक यूनिट खरीदने के लिए रुपये की औसत लागत का भी लाभ उठाता है.

अपने फंड के प्रदर्शन की दूसरे फंड के साथ तुलना करें : Rahul Gupta 

निगेटिव रिटर्न आने पर अपने म्यूचुअल फंड स्कीम की उसी कैटेगरी में और अन्य कैटेगरी में दूसरे म्यूचुअल फंड स्कीम के साथ तुलना करें. अगर आप देखते हैं कि बेस्ट रेटिंग वाले फंडों की तुलना में आपके म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन थोड़ा ही खराब है, तो स्विच करना आवश्यक नहीं होगा. अगर प्रदर्शन में बहुत ज्यादा अंतर है तो स्विच करने के पहले एडवाइजर की सलाह लें.

बाजार का ट्रेंड पहचानें : Rahul Gupta 

अगर इक्विटी की बात करें तो स्टॉक की कीमत में उतार-चढ़ाव बाजार के सामान्य ट्रेंड के कारण होते हैं. जब आप ट्रेंड के सही पक्ष में होते हैं, तो आपके लिए कंपाउंडिंग काम करती है, चाहे वह चढ़ रहा बाजार हो या गिर रहा बाजार. इसलिए, पहला कदम बाजार के सही ट्रेंड का आकलन करना है, आपको पहचानना होगा कि बाजार में बुल ट्रेंड में या बियर ट्रेंड में. फिर उसी ट्रेंड के साथ निवेश करें. 

डाइवर्सिटी : Rahul Gupta 

सफल निवेश के लिए डाइवर्सिटी भी बहुत जरूरी है. इसी वजह से म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय हमेशा पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाइड करने पर जोर देना चाहिए. इसके लिए अलग अलग कैटेगरी के फंड पर विचार कर सकते हें. मल्टी कैप और फ्लेक्सी कैप को भी पोर्टफोलियो में रखने पर विचार कर सकते हैं

सेक्टर और स्टॉक का रिसर्च करें : Rahul Gupta 

अगर आप किसी सेक्टर या निवेश के विकल्‍प में सिर्फ मिलने वाले रिटर्न को देखकर पैसा लगाते हैं तो यह सही तरीका नहीं है. कुछ समय तक हाई रिटर्न देने वाला विकल्प अगले कुछ दिनों में निगेटिव रिटर्न भी दे सकता है. इसलिए पहले आप रिचर्स करें कि जिस फंड में पैसे लगा रहे हैं, उसके पोर्टफोलियो में किन कंपनियों के शेयर हैं. उन कंपनियों में हाई ग्रोथ के साथ लंबी अवधि तक मार्केट में आगे बने रहने की क्षमता है या नहीं. उसके बाद उस फंड के बारे में मसलन उसके पिछले प्रदर्शन, आउटलुक और एक्‍सपेंस रेश्‍यो की तुलना करनी चाहिए. निवेश के पहले फाइनेंशियल एडवाइजर से भी सलाह लें.

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